Saturday, February 6, 2010

प्यार का सिर्फ एक दिन

प्यार कहते है ये ढाई अक्षर की शुरुवात ही अधूरे से हो ती है | इसलिए कुछ लोग कहैते है की प्यार कर ने वाले कभी एक नहीं हो ते, या उन का प्यार परवान नहीं चढ़ पता या उन का प्यार दिशा हिन् हो जाता है | शायद आज के मजनूवो ने इस नाम को कुछ इस तरह खराब कर रखा है के | जैसे ही हमारे सामने ये सब्द आता है हमारे जहैन मे सिर्फ एक लड़का और एक लड़के की प्रेम कहानी लगती है और हमारी सोच सिर्फ यहाँ पर आ कर एक खुठे से बंधी हुई सी प्रतीत सी होने लगती है | जो एक दायरे के बहार नहीं जा सकती | शायद जहा एक और हम भरतीय लगातार हम दुसरी संस्कृति को अपना रहे है , तो वही दुसरी और लोग हमारी संस्कृति और सभ्यता को देखने आते है | तो हम को ये सोच न हो गा के हम को जनम देने वाले हमारे माँ और पिता क्या हमारे सिर्फ १ दिन के माँ और पिता हो ते है जो हम दुसरे देशो को देख कर हमारे संस्कृति भूल कर सिर्फ उन को १ दिन ही याद करे, ऐसा नहीं कर सकते हम | ऐसे ही हम प्यार अपने माँ, पिता, भाई, बहन, दोस्तों, अदि ........ से कर ते है और अगर हम किसी और से भी अगर प्यार करते है तो फिर क्या हम उस को पुरे साल के १ दिन ही चह़ाते है ऐसा नहीं है, तो फिर क्यों हम सिर्फ १ दिन ही chose कर ते है | मे अपने ब्लॉग के माध्यम से प्यार करने वालो का विरोध नहीं कर ता पर आप ही सोचे के क्या प्यार को सिर्फ १ दिन ही काफी है ????????